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गुरुवार, 15 अक्टूबर 2020

अद्वैतवादः

अद्वैतवादः --

 बृहदारण्यकोपनिषदि प्राप्यते यत् - ' अहं ब्रह्मास्मि ' इत्यर्थात् अहम् 'ईश्वरोऽस्मि' इति ' I am the God, omnipotent. ' 
     श्रीशङ्कराचार्यस्य अद्वैतदर्शनमपि कथयति यत् - ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः' इति । अर्थात् ब्रह्म हि सत्यम्,  जगच्च असत्यम्, तथैव जीवः ब्रह्मणः अभिन्नोरूपः इति ।
    सूफीमते अपि उक्तमस्ति यत् 'अनलहक' इत्यर्थात् 'I am the truth - the God. सूफीमतस्य आधारभूतं दर्शनम् 'इब्नुल अरबी' इत्युक्ते एकेश्वरवादः इति ।
  वस्तुतः ईश्वरः एकः एव, अन्यत्सर्वं तस्यैव नानारूपम् इत्यत्र न कापि संशीतिः ।

  सुसायम् ! नमस्सर्वेभ्यः ! जयतु संस्कृतम् ! 🙏🏻🌹🌺
        -- नारदः, १४/१०/२०.

सोमवार, 12 अक्टूबर 2020

हटाने अर्थ वाली क्रिया का प्रयोग

  हटाने अर्थ वाली क्रिया का प्रयोग होने पर कर्ता का जो इच्छित पदार्थ है उसकी भी अपादान संज्ञा होती है व उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है।
 उदाहरण-- कृषकः यवेभ्यो गां वारयति। यहां किसान जौ के खेत से गाय को इसलिए ह्टाता है क्योंकि जौ उसका इच्छित पदार्थ है। अतः जौ की अपादान संज्ञा होकर पञ्चमी विभक्ति हुई।
   इसी प्रकार-२) माता शिशोः मलिनतां वारयति ।
                       माता शिशु की मलिनता को दूर करती है
                ३) गृहणी मार्जन्या गृहात्‌ अवकरम्‌ अपसारयति।
                     गृहणी झाड़ू से घर से कूड़ा हटाती है।
                 ४) गुरुः शिष्यात्‌ अज्ञानं निवारयति।
                      गुरु शिष्य से अज्ञान दूर करता है।
                 ५) सैनिकः भूमेः शत्रुं निवर्तयति।
                      सैनिक भूमि से शत्रु को हटाता है।
                 ६) पिता पुत्रात्‌ पापं पृथग्‌करोति।
                      पिता पुत्र से पाप को दूर करता है।
                 ७) ईश्वरः लोकात्‌ सर्वाः बाधाः अपसारयति।
                      ईश्वर लोक से सारी बाधाओं को हटाता है
                 ८) रामः कृष्णं ग्रामाद्‌ व्यपनयति।
                      राम कृष्ण को गांव से हटाता है।
                 ९) लेखहारकः कुक्कुरं विद्यालयात्‌ अपसारयति।
                      चपरासी कुते को विद्यालय से हटाता है।
               १०) अहं वस्तु प्रकोष्ठाद्‌ वारयामि।
                        मैं वस्तु को कमरे से हटाता हूं।

विश्वासभङ्गः

विश्वास भङ्गः अल्पना नाम्नी नारी स्वपतेः विजयस्य व्यवहारपरिवर्तनम् अपश्यत्। सः बहुभ्यः दिनेभ्यः तां प्रति बालकान् प्रति च अवधानं न यच्छति स्...