हटाने अर्थ वाली क्रिया का प्रयोग

  हटाने अर्थ वाली क्रिया का प्रयोग होने पर कर्ता का जो इच्छित पदार्थ है उसकी भी अपादान संज्ञा होती है व उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है।
 उदाहरण-- कृषकः यवेभ्यो गां वारयति। यहां किसान जौ के खेत से गाय को इसलिए ह्टाता है क्योंकि जौ उसका इच्छित पदार्थ है। अतः जौ की अपादान संज्ञा होकर पञ्चमी विभक्ति हुई।
   इसी प्रकार-२) माता शिशोः मलिनतां वारयति ।
                       माता शिशु की मलिनता को दूर करती है
                ३) गृहणी मार्जन्या गृहात्‌ अवकरम्‌ अपसारयति।
                     गृहणी झाड़ू से घर से कूड़ा हटाती है।
                 ४) गुरुः शिष्यात्‌ अज्ञानं निवारयति।
                      गुरु शिष्य से अज्ञान दूर करता है।
                 ५) सैनिकः भूमेः शत्रुं निवर्तयति।
                      सैनिक भूमि से शत्रु को हटाता है।
                 ६) पिता पुत्रात्‌ पापं पृथग्‌करोति।
                      पिता पुत्र से पाप को दूर करता है।
                 ७) ईश्वरः लोकात्‌ सर्वाः बाधाः अपसारयति।
                      ईश्वर लोक से सारी बाधाओं को हटाता है
                 ८) रामः कृष्णं ग्रामाद्‌ व्यपनयति।
                      राम कृष्ण को गांव से हटाता है।
                 ९) लेखहारकः कुक्कुरं विद्यालयात्‌ अपसारयति।
                      चपरासी कुते को विद्यालय से हटाता है।
               १०) अहं वस्तु प्रकोष्ठाद्‌ वारयामि।
                        मैं वस्तु को कमरे से हटाता हूं।

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दर्दुराणां गीतं

वर्षर्तौ दर्दुरा: दर्दुरी: स्वकीयं प्रति आकर्षयितुं रुवन्ति। यतोहि दर्दुराणां प्रजननं वर्षर्तौ एव भवति। दर्दुर: एव रवितुं सक्षमोऽस्ति, यतोहि दर्दुरेषु एव स्वरयंत्रं भवति। एतदर्थं दर्दुरा: कण्ठसमीपे अङ्गे वायुं बेलुनवत् पूरयित्वा रुवन्ति। तेषाम् एषः रवनध्वनि: बहुदूरं यावत् श्रोतुं शक्यते। वर्षचरणमासेषु दर्दुराणां प्रजननं समभवत्। तेषां संगीतमयं रवणध्वनि: सर्वत्र विस्तृतः। तद्वायू कण्ठत्राणात् समुत्पद्यमानः लोकस्य कर्णाणि तर्पयति। प्रकृतेः विविधत्वस्य दर्दुराः प्रतीकं सन्ति। तेषाम् इयं कलाकृति भूमण्डले सर्वत्र प्रसृता। तस्यां मानव: लीलया मग्नो भवति। दर्दुराणां प्रजननी अवधि: वर्षर्तुकालः एव। तत्र एव तेषाम् आवासः, भोजनं च समतिष्ठते। वर्षायने छन्नाच्छन्नाः दर्दुरा: दर्दुरीश्च स्वकीयमाकर्षणं कुर्वन्ति। तथाच गम्भीरगम्भीर: तेषाम् आक्रोश: दूरं श्रूयते। प्रकृतिप्रेमिणां दर्दुराणां कलाकृति: सर्वदा वन्दनीया भवति। वर्षा-ऋतौ दर्दुरा: स्वं संगीतं विविधत्वेन प्रकाशयन्ति। उपवनेषु, गर्तेषु, जलाशयेषु च ते निवसन्ति। वर्षायनसमये सर्वत्र तेषां उचितरवः श्रूयते। घनमेघस्य गर्जनं, जलप्रपातानां जलक्षणं, तदुपरि दर...